बुधवार, 19 दिसंबर 2018

कीर्तिप्रभा, रीवा। समूचा विन्ध्य क्षेत्र उपेक्षा की दंश झेलते-झेलते थक गया: वीरेन्द्र सिंह बघेल

कीर्तिप्रभा, रीवा।
मध्य प्रदेश बनने के बाद हुई विन्ध्य की उपेक्षा और पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के द्वारा किये गये सौतेले व्यवहार पर पीड़ा व्यक्त करते हुये समाजवादी नेता जिला अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह बघेल ने कहा है कि समूचा विन्ध्य क्षेत्र उपेक्षा की दंश झेलते-झेलते थक गया है, और जाने-अनजाने दक्षिण पंथ की ओर मुड़ गया लगता है और आत्म सम्मान से समझौता करता दिख रहा है। विन्ध्य का म0प्र0 में विलय संगीनों के साऐ मे, विन्ध्य वासियों के सीने में माउजर रख कर किया गया, लोगों ने विरोध किया जो उन्हे प्राणों की आहुति देनी पड़ी। रीवा विन्ध्य की राजधानी थी और उसका अपना गौरवमयी इतिहास था। रीवा महाराजा स्व0 श्री विश्वनाथ सिंह द्वारा रीवा राज्य में मिताक्षरा न्यायालय की स्थापना की गई थी, जो कचेहरी मिताक्षरा के नाम से मसहूर थी, जिसमें दीवानी और फौजदारी मुकदमों की सुनवाई कर निर्णय किये जाते थें। स्व0 महाराजा श्री विश्वनाथ सिंह जी द्वारा इस तरह की गई न्याय व्यवस्था रीवा राज्य में कायम थी, बाद में सन् 1932 में रीवा का पहला हाइकोर्ट चीफ कोर्ट के नाम से कायम किया गया, और सन् 1944 में हाईकोर्ट कांन्स्टीट्यूशन एक्ट के द्वारा हाईकोर्ट के नाम से मौजूद था, और उच्च आदर्श को कायम कर न्याय किया जाता रहा। न्यायालय सन् 1956 तक विधिवत संचालित रहा, और कई ऐतिहासिक निर्णय भी हुये थें। किन्तु जैसे ही विन्ध्य का विलय म0प्र0 में हुआ वैसे ही इसे बन्द कर दिया गया। विन्ध्य प्रदेश में विधि के क्षेत्र में जिला अधिवक्ता संघ का भी उतना ही गौरवशाली इतिहास रहा है जितना कि न्यायालय और न्याय व्यवस्था का था। इन्दौर और ग्वालियर में म0प्र0 उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थापित कर वहां का मान बढ़ाया गया, किन्तु विन्ध्य क्षेत्र को म0प्र0 में विलय का दंश झेलने के लिये आज तक विवश किया गया। जिला अधिवक्ता संघ के द्वारा अपनी खोई हुई पहचान वापस पाने उच्च न्यायालय की खण्डपीठ रीवा में स्थापित किये जाने के लिये दो बड़े आन्दोलन विन्ध्य प्रदेश में किये गये, और किसी न किसी रूप में विन्ध्य वासियों के मन मे आज भी यह चिनगारी सुलग रही है, और किसी न किसी रूप में सरकार के सामने भी बात आती है। कांग्रेस के द्वारा सन् 1956 में विन्ध्य का विलय कर रीवा के बजाय म0प्र0 की राजधानी भोपाल बनाया गया, रीवा से राजधानी छीनी गई, उच्च न्यायालय भी छीन लिया गया। कई बड़े कार्यालय समझौते के तहत रीवा में खोले गये थें, उन्हे भी सनै: - सनै: समाप्त कर दिया गया। यह उपेक्षा अभी भी जारी है, इसी का परिणाम है कि समूचा विन्ध्य समाजवाद की मूल धारा से इतर दक्षिण पंथ की ओर मुड़़ गया लगता है। विधानसभा के चुनाव परिणाम ने विन्ध्य में कांग्रेस का सफाया कर शिवराज सिंह के नाटकीय वादों में फस गया लगता है, जो इस क्षेत्र के लिये कतई शुभ संकेत नही है, मन्दिर, गाय, गोबर की सरकार विन्ध्य का भला कैसे कर सकती है। विन्ध्य का अस्तित्व कांग्रेस शासन में समाप्त हुआ, इसी का दोषी मान विन्ध्य वासियों ने समाजवादी विचारों को तिरोहित कर दक्षिण पंथ का दामन थाम लिया है। एक कहावत है कि इतिहास अपने को दोहराता है, आज कांग्रेस के पास भी इतिहास दोहराने का अवसर आया है, कि विन्ध्य क्षेत्र की बहुप्रतिक्षित पुरानी मांग उच्च न्यायालय की खण्डपीठ रीवा में खोले जाने की बात स्वीकार कर लें, प्रदेश सरकार विन्ध्य वासियों को सस्ता एवं सुलभ न्याय दिलाने के लिये रीवा मे खण्डपीठ की स्थापना कर उसका गौरव वापस कर सकती है, और इंजीनियरिंग कॉलेज की भूमि पर बन रहे जिला न्यायालय भवन में मान्नीय उच्च न्यायालय की पीठ संचालित की जाकर जिला न्यायालय भवन को यथावत कोठी कम्पाउण्ड स्थित पुराने भवन में ही रहने दिया जाय।

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