लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा-कांग्रेस में सरगर्मी बढ़ी, प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस में सबसे ज्यादा माथापच्ची
भाजपा ने राजेन्द्र को आजमाया तो कांग्रेस से कौन लेगा टक्कर!
रीवा। लोकसभा चुनाव के लिए अब समय कम बचा है। संभवता अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह तक चुनाव होना है। चर्चा है कि चालू माह के अंत तक अथवा फरवरी के प्रथम सप्ताह तक अधिसूचना भी जारी हो जायेगी। ऐसे में प्रमुख राजनौतिक दल भाजपा एवं कांग्रेस जीतने वाले प्रत्याशी के चयन में जुट चुके हैं। भाजपा के बारे में पार्टी सूत्रों की माने तो रीवा लोकसभा सीट किसी भी सूरत में पार्टी खोना नहीं चाहती। इस हिसाब से सांसद जनार्दन मिश्र को इस चुनाव में किनारे किए जाने की संभावना है। अब सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा यदि आसन्न लोकसभा चुनाव में जनार्दन मिश्र पर दाव लगाने के लिए तैयार नहीं है तो आखिर नया चेहरा कौन होगा जिसे चुनाव मैदान में उतारा जायेगा। चर्चा यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी आसन्न चुनाव में सबसे बड़े चेहरे पर दांव लगाने की सोच रही है। मसलन पूर्व मंत्री एवं विधायक राजेन्द्र शुक्ल प्रत्याशी हो सकते हैं। उधर कांग्रेस भी रीवा लोकसभा सीट को किसी भी सूरत में जीतना चाह रही है। लेकिन कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि पार्टी में कोई ऐसा चेहरा ही नहीं है जो राजेन्द्र शुक्ल का टक्कर ले सके। लिहाजा पार्टी के भीतर जबरदस्त मंथन चल रहा है कि आखिर दाव किस चेहरे पर लगाया जाये। दरअसल कांग्रेस में जो भी पुराने चेहरे बचे हैं उनकी कोई साख बची नहीं है।
कांग्रेस पार्टी की बेचैनी इस बात को लेकर भी बढ़ रही है कि आखिर वह दाव लगाये तो लगाये किस पर। पुराने चेहरों में देखा जाये तो पूर्व विधायक सुंदरलाल तिवारी, पूर्व विधायक सुखेन्द्र सिंह बन्ना, पूर्व विधायक अभय मिश्रा के अलावा कोई खास चेहरा है ही नहीं। अन्य जो चेहरे कांग्रेस के पास हैं भी तो वह या तो जनता के बीच अपना वजूद खो चुके हैं या फिर चुनाव में खर्च करने की क्षमता नहीं रखते। पार्टी भी आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं है कि अपने प्रत्याशी का चुनावी खर्च वहन कर सके। माना यह जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी किसी मालदार नेता पर ही दाव लगा सकती है। जहां तक जन सामान्य के बीच राजनैतिक दलों के लोकप्रीय होने का सवाल है तो भाजपा-कांग्रेस दोनो अब किसी से कम नहीं है। दरअसल प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने किसानों की कर्जमाफी कर उनका ध्यान अपने पार्टी की ओर खंीच दिया है। तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनावी सीजन में लालीपाप दिखाना शुरू कर दिया है। रीवा जिले में विशेष प्रभाव रखने वाली बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो विधानसभा चुनाव से ही उसका आस्तित्व समाप्त सा हो चुका है। पार्टी के गिरते स्तर को देखते हुए हालत यह हो गई है कि फिलहाल टिकट की दौड़ में भी कोई नेता पार्टी के प्रति रूचि नहीं ले रहा है। सुना जा रहा है कि पूर्व सांसद देवराज पटेल ने कुछ माह पूर्व ही चुनाव लडऩे से साफ इन्कार कर दिया है। फिर भी यह बात तो तय है कि बहुजन समाज पार्टी भी अपना वजूद बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी। हलांकि बहुजन समाज पार्टी के वोटों पर भारतीय जनता पार्टी लगातार नजर बनाये हुए हैं। यह भी सही है कि बसपा के वोट बैंक में भाजपा बड़ी सेंध लगा चुकी है। ऐसे में बसपा का राजनैतिक भविष्य क्या होगा अंदाजा लगाया जा सकता है।
नहीं चलेगा आयातित नेता
कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव को लेकर नये चेहरे की तलाश में लगी हुई है। लेकिन पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और जमीनी नेता आयातित चेहरों के खिलाफ है। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा न केवल आयातित नेताओं का विरोध किया गया था बल्कि उनका सिक्का न जमने पाये इसके लिए जबरदस्त भितरघात करते हुए रीवा जिले से ही नहीं विंध्य क्षेत्र से कांग्रेस का सुपड़ा साफ कर दिया था। जाहिर है कि आयातित नेताओं को यदि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में आजमाती है तो विधानसभा चुनाव जैसा ही हश्र होना स्वाभाविक है। हलांकि आयातित नेताओं के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प भी नजर नहीं आ रहा है। दरअसल कांग्रेस के पास जमीनी नेताओं में से कोई भी ऐसा चेहरा नहीं है जो चुनाव में राजेन्द्र शुक्ला से टक्कर ले सके। पार्टी से हटकर यदि आमजनमानस की राय माने तो लोगों का मत है कि कांग्रेस पार्टी एक ही सूरत में चुनाव जीत सकती है जब किसी उभरते हुए युवा नेता पर दांव लगाये।
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