श्रद्धालुओं ने की भगवान शिव की पूजा और मेलों में हुई जमकर खरीदी
जवा ब्लाक के लूक स्थित लोकेश्वरनाथ के शिवालय में हजारों हजार उमड़े श्रद्धालु
वरिष्ठ समाजसेवी रमाशंकर ने आयोजित किया भण्डारा
महाशिवरात्रि महोत्सव के अवसर पर रीवा शहर सहीत ग्रामीण क्षेत्रों में भगवान शिवशंकर के मंदिरों में रूद्राभिषेक हवन एवं भण्डारे का कार्यक्रम आयोजित किया गया। वहीं ग्रामीणों ने जगह-जगह पर लगे धर्म स्थलों पर मेले में खरीदी कर आनंद भी उठाया। जिले के तराई अंचल के जवा ब्लाक में स्थित लूक में लोकेश्वरनाथ में हजारों-हजार की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे जहां पर भगवान शिवशंकर के मंदिर में पूजा अर्चना की और वरिष्ठ समाजसेवी रमाशंकर मिश्र द्वारा आयोजित विशाल भण्डारा कार्यक्रम में लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। महाशिवालय लोकेश्वरनाथ में इस वर्ष भी समाजसेवियों ने वहां पर पहुंचने वाले श्रद्धालु को असुविधा न हो पाए तथा भव्य रूप देने के लिए लूक गांव से वरिष्ठ समाजसेवी मुकेश गौतम, टीएन तिवारी, कुंजीलाल मिश्रा, सुधाकर द्विवेदी, सुरेश मिश्रा, केपी मिश्रा, ददन मिश्रा, बृजेश गौतम, मुन्ना देवलिहा आदि का सराहनीय योगदान रहा।
कीर्तिप्रभा, रीवा। पुराणों में यह माना जाता है कि भगवान शिव कई रूपों में अपने श्रद्धालुओं के बीच प्रकट हुए हैं और समय समय पर जन कल्याण के लिए विभिन्न रूपों के माध्यम से अपने भक्तों का उद्धार किया है। भगवान शंकर का अर्धनारीश्वर स्वरूप का पैराणिक उद्भव पुराणों में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का वर्णन आया है। कथाओं के अनुसार एकबार जब ब्रह्मा जी इस सृष्टि का सृजन करने की सोचते हैं तक सब कीट पतंग जीव जंतु बना देते हैं लेकिन सृस्टि का विकास न होते हुए देख चिंतित होकर भगवान विष्णु के पास जाते हैं। भगवान विष्णु ब्रह्माजी को शिव के पास जाने का आदेश देते हैं। तब भगवान शिव जी द्वारा ब्रह्मा जी को अपना अर्धनारीश्वर स्वरूप दिखाया जाता है और शिव के अर्धनारीश्वर के स्वरूप से देवी का प्रादुर्भाव होता है और कालांतर में वही शिव का अर्धनारीश्वर शरीर शैल पुत्री पार्वती के रूप में जन्मती हैं। अर्धनारीश्वर स्वरूप का रहस्य भगवान शिव के अर्धनारीश्वर शरीर मे भगवान शिव एवं उनकी अर्धांगनी शक्ति का स्वरूप दिखाया गया है। शिव-शक्ति के इस स्वरूप में आध्यात्मिक गहराई है जिसे समझना आवश्यक है। आचार्य ने बताया कि इस सृष्टि के सृजन के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। बिना शक्ति के शिव इस श्रिष्टि का सृजन नही करते। नर और मादा, स्त्री और पुरुष, सृजन के साथ संहार का प्रतीक है भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप। आचार्य ने बताया कि शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का चिंतन करने से मानवीय शक्तियों में वृद्धि होती है, व्यक्ति सामर्थ्यवान बनकर सांसारिक मोह माया के बंधन में होते हुए भी अंतत: मोक्ष की प्राप्ति करता है। भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप साकार और निराकार ब्रह्म की संपूर्णता को दर्शाता है। सदाशिव भगवान भोलेनाथ सत चित आनंद स्वरूप सच्चिदानंद भगवान हैं, शक्ति के प्रादुर्भाव होने से अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण कर वह इस सृष्टि में सृजनात्मक एवं संहारात्मक स्वरूप ग्रहण करते हैं एवं साकार ब्रह्म के रूप में पूजे जाते हैं। महामृत्युंजय मंत्र जप से जीवन मरण से मिलती है मुक्ति, जीव को अमरत्व का होता है बोध आचार्य ने इस बीच कथा के आठवें दिन महामृत्युंजय मंत्र के माहात्म्य पर प्रकाश डाला और बताया कि महामृत्युंजय मंत्र भी महामंत्र है जिसके विधि पूर्वक जप से शास्त्रविहित समस्त कामनाओं की पूर्ति तो होती ही है साथ ही निष्काम भाव से महामृत्युंजय जप और ध्यान से जीवन मरण के चक्र के बंधन से मुक्ति पाकर जीवात्मा को परम पद की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में दुख क्लेश, अधिदैविक, आध्यात्मिक, एवं अधिभौतिक कष्टों के निवारण हेतु सवा लाख महामृत्युंजय जप का विधान बताया गया है। घातक बीमारियों से निजात पाने, जीवन मे शुख शांति के लिए, पूर्वजन्मों के प्राप्त प्रारब्ध कर्मों से उत्पन्न कष्टों के निवारण के लिए एवं आध्यात्मिक एवं मानशिक शक्ति जागृत करने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र का सही भावार्थ आचार्य जी ने बताया कि महामृत्युंजय मंत्र का तात्पर्य शारीरिक अमरत्व से कदापि नही है। हाँ महामृत्युंजय मंत्र जप से आयु और शक्ति में अवश्य वृद्धि होती है, जीवन शुखमय, स्वस्थ्य होता है लेकिन जिस किसी भी जीव का जन्म इस मृत्युलोक में हुआ है उसके शरीर का इस आत्मा द्वारा त्याग सुनिश्चित है। अर्थात जो जन्म लेता है उसका मरना सुनिश्चित है अत: महामृत्युंजय मंत्र के जप से कोई शारिरिक अमरता प्राप्त नही कर सकता बल्कि आत्मिक अमरत्व का बोध अवश्य होता है। क्योंकि आत्मा अजर, अमर, शास्वत, सनातन, अजन्मा है इसलिए महामंत्रों के जप एवं इष्ट पर ध्यान से प्रभु उस आत्मा की अमरता का बोध अवश्य कराते हैं जिससे मानव का मृत्युभय समाप्त हो जाता है और जीव जीवन्मुक्त हो जाता है। जिस प्रकार अग्नि को धुआं और सूर्य को बादल ढके रहते हैं उसी प्रकार हमारी अमर आत्मा को अज्ञान रूपी अंधकार ढंका रहता है जिससे उस आत्मा की शक्ति और अमरता का बोध नही होने पाता। यह माया रूपी अज्ञान का आवरण जब आत्मा के ऊपर से हट जाता है उसी क्षण हम अमरत्व को प्राप्त कर लेते हैं और महामंत्र यही आत्मा के अमरत्व का बोध कराकर मॉनव को मुक्तिप्रदान करते हैं। जिस क्षण इस बात का बोध हो जाये कि हम नश्वर शरीर नही बल्कि अमर अजर आत्मा हैं बस उसी क्षण मुक्ति मिल गयी। आत्मा की अमरता का बोध राजा जनक को होना बताया गया इसलिए राजा जनक को विदेह अर्थात जीवन्मुक्त बताया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें